क्रांतिकारी आंदोल का उदय

क्रांतिकारी आंदोलनों का उदय क्यों हुआ 


जनजातीय प्रतिरोध की भावना जागृत होना

1857 ईसवी की क्रांति के पूर्व एवं 1857 ईसवी की क्रांति के बाद अंग्रेजी शासन के विरुद्ध अनेक विद्रोह हुए जनजाति प्रतिरोध का नेतृत्व स्थानीय जनजाति समुदाय के लोगों ने किया कोल संथानतील मुंडा जनजाति समुदाय के नेताओं ने अपने अपने क्षेत्र में इसका नेतृत्व किया।

अंग्रेजी शासनकाल में अनेक स्थानों पर ब्रिटिश शासकों को जनजाति विरोध का सामना करना पड़ा ब्रिटिश राज्य की स्थापना के बाद भू राजस्व प्रणाली प्रशासनिक एवं न्याय की प्रणाली के परिवर्तन से जनजातीय समाज प्रभावित हुआ अंग्रेजी शासन प्रणाली के अंतर्गत पुलिस एवं प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा जनजाति क्षेत्र में प्रवेश कर जनजाति समुदाय का घोषण कर दिया गया।

उन पर विभिन्न प्रकार के प्रतिबंध लाकर अत्याचार किए जाते थे ब्रिटिश अधिकारियों के साथ ही इस नई व्यवस्था के अंतर्गत ठेकेदार व्यापारी साहूकार आदि अंग्रेज के बिचौलिए के रूप में कार्य करने लगे वनों पर अधिकार कर एक संपत्ति की सुरक्षा के लिए विभिन्न प्रकार की नियम बनाकर प्रतिबंध लगाए गए जनजाति क्षेत्र में उत्पादित वस्तुओं पर अनेक प्रकार के कर लगाए गए।

उनसे बेकार ली जाने लगी ईसाई मिशनरियों की घुसपैठ जनजाति क्षेत्रों में बढ़ने लगी। आक्रोशित जनजाति लोगों ने अंग्रेजी सरकार से संघर्ष किया जब औपनिवेशिक शासन जनजातीय लोगों के प्रतिरोध का दमन बड़ी क्रूरता से करने लगा तब इनका प्रतिरोध सशस्त्र विद्रोह के रूप में बदल गया।

जनजातीय लोगों ने कभी एक दूसरे पर हमला नहीं किया उन्होंने उन पर हमला नहीं किया जिंदगी जनजाति अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका थी और जी से उनके सामाजिक संबंध थे इन्होंने लोहार, बढ़ई, कुम्हार, जुलाहे, नाई आदि एवं बाहरी लोगों के यहां काम करने वाले नौकरों पर हमला नहीं किया।

पूरी भारत में चुआर, खांसी, शिंगो, नागा, कुकी, खोंड, संथाल, कॉल, मुंडा, भूमिज आदि ने विद्रोह किया। 

पश्चिम भारत में भील रामोशी आदि ने विद्रोह किया। दक्षिण में कोरामल्या एवं कोंडा डोरा जनजाति विद्रोह हुआ

खासी विद्रोह – (1829 ई. )

पूर्वी भारत में औपनिवेशक शोषण के विरुद्ध कई विद्रोह हुए असम की सीमाओं के निकट पहाड़ी क्षेत्र में रहने वाले खासी जनजाति ने 1829 ईसवी में विद्रोह किया अंग्रेजों ने इनके क्षेत्र से निकलने वाली सड़क बनाने का भी कार्य प्रारंभ कर दिए इस कार्य हेतु जो खासी जनजाति के लोगों ने विद्रोह किया तो बलपूर्वक मजदूरों के रूप में भर्ती की कर लिया गया दिन में आक्रोश व्याप्त हो गया तीरत सिंह के नेतृत्व में खासियों ने अंग्रेजों पर आक्रमण किया अंग्रेजन इस विद्रोह को बड़ी क्रूरता के साथ दबा दिया।

कोल विद्रोह – (1831 ई. )

अंग्रेजों की प्रशासनिक व्यवस्था उनकी शोषण की नीति कठोर भूमि कार्य तथा स्थानीय अधिकारियों कर्मचारियों की व्यवहार से कोल लोग असंतुष्ट हो गए 1831 ईसवी में छोटा नागपुर से प्रारंभ हुआ यह विद्रोह रांची, हजारीबाग, पलामू, मान भूमि आदि स्थानों पर फैल गया।

भूमिज विद्रोह – (1832 ई. )

भूमि जनजाति ने 1832 ईसवी में वीर भूमि एवं जंगल महाल ने गंगा नारायण के नेतृत्व में विद्रोह किया।

खोंड़ विद्रोह – (1846 ई. )

उड़ीसा की सीमा के निकट रहने वाली खोंड जनजाति ने 1846 ईसवी में चंद बिसाई के नेतृत्व में अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह कर दिया।

संथाल विद्रोह – (1850 ई.)

अंग्रेजी शासन के विरुद्ध 18 से 50 ईसवी के बाद होने वाले विद्रोह में संथाल जनजाति का विद्रोह सबसे तीव्र एवं महत्वपूर्ण था भागलपुर से राजमहल तक क्षेत्र संथाल बाहुल्य क्षेत्र था संस्थानों का विद्रोह मुख्य रूप से वीरभूमि, बांकुरा, सिंहभूमि हजारीबाग भागलपुर एवं मुंगेर तक फैला।

इस विद्रोह का मुख्य कारण अंग्रेजी उपनिवेशवादी शोषण नीति थी भूमि टैक्स अधिक लेना, अंग्रेजी अदालतों से ठीक न्याय ना मिलना, पुलिस के भ्रष्टाचार और अत्याचार महाजनों द्वारा शोषण किया जाना, उधार की विकट समस्या आदि कारणों से संस्थानों में विद्रोह की भावना जागृत हो गई।

30 जून 1855 को भगनीडीह मैं हजारों संथाल जनजाति है लोग एकत्र हुए इन्होंने विदेशियों का राज्य समाप्त करने एवं धर्म पर आधारित राज्य स्थापित करने का निश्चय किया संथाल के प्रमुख नेता सिंधु और कान्हू थे।

इन्होंने अंग्रेजी कंपनी के शासन को समाप्त करने की घोषणा करते हुए खुद को स्वतंत्र घोषित कर दिया उन्होंने कहा कि स्वयं ईश्वर ने ने इस कार्य के लिए चुना है और स्वर्ग से ही ने संदेश प्राप्त हुआ है प्रत्येक गांव में सिंधु और कान्हू की ओर से एक पत्र धूप में सुखाएं गए चावल, तेल और हल्दी भेजी गई यह कहा गया कि इनका प्रयोग करने से संस्थानों की आत्मा शक्ति बढ़ेगी और उन्हें संघर्ष करने की प्रेरणा मिलेगी इन्होंने उपनिवेशवादी सत्ता का प्रतीक पुलिस स्टेशन एवं अन्य भवनों पर हमले की धनी व्यक्तियों को लूटा इस विद्रोह को दबाने के लिए अंग्रेजी प्रशासन की सहायता के लिए सेना बुलाई गई 1855 ईसवी में सिंधु पकड़ा गया और उसे मार दिया गया फरवरी 1856 में कन्हू पकड़ लिया गया इस प्रकार 1856 समाप्त हो गया।

मुंडा विद्रोह – (1899 ई. – 1900 ई.)

मुंडा जनजाति ने प्रमुख विद्रोह 1899 से 1900 के मध्य बिरसा मुंडा के नेतृत्व में किया गया यह विद्रोह रांची के दक्षिण के भूभाग में हुआ मुंडा जनजाति बिरसा मुंडा को भगवान मानने लगी बिरसा मुंडा ने ब्रिटिश अधिकारियों ईसाई पादरी और ठेकेदारों और जागीरदारों के विरुद्ध मुंडाओं को ससस्त्र विद्रोह के लिए उकसाया। इन्हें मार डालने के लिए कहा मुंडाओं ने गिरजाघर एवं पुलिस वालों पर हमले किए जून 1900 ई. में जेल में बिरसा मुंडा की मौत हो गई।

रामोसी विद्रोह – (1822 ई.)

पश्चिम के जनजातीय विद्रोह में 1822 ईसवी में सतारा के आसपास के क्षेत्र को रामोसी विद्रोह चितर सिंह के नेतृत्व में हुआ रामोशी अंग्रेजी शासन प्रणाली से आक्रोशित थे।

भील विद्रोह – (1900 ई.)

1825 ई. में सेवरम के नेतृत्व में भील विद्रोह हुआ कृषि संबंधित परिवर्तन के कारण यह अंग्रेजों से असंतुष्ट से अंग्रेजों ने भीड़ को दबाने के लिए सेना की एक टुकड़ी भेजी।

कोरा माल्या विद्रोह – (1900 ई.)

दक्षिण के जनजातीय विद्रोह में 1900 ईसवी में हुआ कोरा माल्या का विद्रोह प्रमुखता यह ब्रिटिश साम्राज्यवाद विरोधी आंदोलन था कोरा माल्या ने अपने को पांच पांडवों में से एक पांडव बताया और कहा कि उसमें बांस और बंदूक में और पुलिस की बंदूकों को पानी में बदल देने की शक्ति है इसमें लगभग 5000 लोगों को एकत्र किया और पुलिस स्टेशन पर आक्रमण किया इसने यह भी घोषणा कि उसने अंग्रेजों को देश से भगा दिया है 

गोदावरी एजेंसी में वन अधिनियम एवं उत्पाद शुल्क के विरोध में आंदोलन हुआ विद्रोहियों ने अपने आपको राम की सेना बताया इनकी नेता राजन अनंत्या ने अपने आपको राम का अवतार कहा।

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