स्वामी विवेकानंद और उनका रामकृष्ण मिशन

स्वामी विवेकानंद और उनका रामकृष्ण मिशन

हेलो नमस्कार दोस्तों, आज की इस पोस्ट में हम आपको स्वामी विवेकानंद से संबंधित जानकारी शेयर करने वाले है

उनके बारे में जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं तो आप हमारी आज की इस पोस्ट को पढ़ सकते हैं।

जीवन परिचय – 

रामकृष्ण मिशन के संस्थापक स्वामी विवेकानंद काल जन्म 12 जनवरी 1863 को कोलकाता में हुआ था इनकी बचपन का नाम नरेंद्र नाथ तथा इनके पिता विश्वनाथ दत्त एवं माता भुनेश्वरी देवी थी स्वामी विवेकानंद कोलकाता विश्वविद्यालय के स्नातक थे स्वामी विवेकानंद अपनी धार्मिक और आध्यात्मिक जिज्ञासा के कारण रामकृष्ण परमहंस के संपर्क में आए। रामकृष्ण कि हिंदू धर्म में गहरी आस्था थी।

राम कृष्ण ईश्वर की प्राप्ति के लिए निस्वार्थ भक्ति भावना प्रबल देते थे वे सभी मतों की मौलिक एकता में विश्वास करते थे। रामकृष्ण परमहंस के विचारों से प्रभावित होकर स्वामी विवेकानंद उनके शिष्य बन गई 1886 ईसवी में राम कृष्ण की मृत्यु हो जाने के बाद विवेकानंद ने सन्यास ग्रहण कर लिया उन्होंने भारत के कई स्थानों का भ्रमण किया और धार्मिक ग्रंथों की गहराई से अध्ययन किया।

शिकागो विश्व धर्म सम्मेलन में भाग लेना –

खेतड़ी के महाराजा ने इनका सहयोग किया अमेरिका धर्म सम्मेलन में भाग लेने के लिए। विवेकानंद सितंबर 1893 में विश्व धर्म संसद में भाग लेने के लिए अमेरिका के शिकागो शहर में गए। सितंबर 1893 में विश्व धर्म सम्मेलन में इन्होंने अपना प्रसिद्ध भाषण प्रिय भाइयों और बहनों के संबोधन से प्रारंभ किया।

अपने भाषण में इन्होंने भारतीय संस्कृति और धर्म की महत्वपूर्णता को बड़े प्रभावशाली तरीके से पश्चिमी जगत के समक्ष रखा इन्होंने अपने व्याख्यान द्वारा भारत की बौद्धिक आध्यात्मिक एवं धार्मिक समृद्धा को प्रमाणित किया इनके संबंध में अमेरिका के न्यूयॉर्क हेराल्ड ने लिखा शिकागो धर्म सम्मेलन में विवेकानंद ही सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति हैं उनके बाहर सुनने के बाद लगता है कि भारत जैसे समुन्नत राष्ट्र में ईसाई प्रचारक हो भेजा जाना कितनी मूर्खता की बात है विवेकानंद ने इसके बाद अमेरिका एवं इंग्लैंड में भ्रमण कर हिंदू धर्म एवं संस्कृति का प्रचार प्रसार किया 1896 ईसवी में न्यूयॉर्क में वेदांत सोसाइटी की स्थापना की।

रामकृष्ण मिशन की स्थापना –

5 मई 1897 में स्वामी विवेकानंद ने बेलूर में रामकृष्ण मिशन की स्थापना की रामकृष्ण मिशन की स्थापना स्वामी विवेकानंद ने अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस के नाम पर की थी इसकी शाखा भारत के विभिन्न भागों और विदेशों में खोली गई स्वामी विवेकानंद ने रामकृष्ण मिशन के माध्यम से अपने विचारों का प्रचार-प्रसार किया रामकृष्ण मिशन की शिक्षाएं मुख्य रूप से वेदांत दर्शन पर आधारित है।

सामाजिक विचार एवं कार्य –

विवेकानंद ने के समय में भारतीय समाज में व्याप्त बुराइयों एवं कुरीतियों का विरोध किया।

उन्होंने जाति भेदभाव का विरोध कर समानता की बात कही उनका कहना था कि सामाजिक, धार्मिक परंपराओं एवं मान्यता को तभी स्वीकार करना चाहिए जब भी ठीक जान पड़े उन्होंने स्त्री पुनरुत्थान की बात कही भी निर्धनता एवं अज्ञानता को समाप्त करना चाहती थी उन्होंने कहा जब “तक तक करोड़ों लोग भूखे और अनपढ़ है तब तक मैं उस हर आदमी को देशद्रोही मानता हूं जो उन्हीं के पैसों पर विद्या प्राप्त करते है परंतु उनकी चिंता नहीं करता”

रामकृष्ण मिशन ने कई विश्वविद्यालय अनाथालय चिकित्सालय आदि की स्थापना की और इसके माध्यम से समाज सेवा के कार्य किए गए अकाल, बाड़ आदि विपदा के समय रामकृष्ण मिशन ने लोगों को समाज सेवा की प्रेरणा दी।

धार्मिक विचार –

स्वामी विवेकानंद हिंदू धर्म एवं दर्शन में गहन आस्था रखती थी उन्होंने हिंदू धर्म एवं संस्कृति की मौलिकता एवं इसकी विशेषता को लोगों के समक्ष रखा इन्होंने मनुष्य की आत्मा को ईश्वर का अंश बताया है इनका मानना है कि ईश्वर की आराधना का एक रुप दीन दुखी और दरिद्र की सेवा करना भी है रामकृष्ण मिशन ने मानव सेवा को भगवान की सेवा माना है “नर सेवा नारायण सेवा” उनका मुख्य वाक्य है।

स्वामी विवेकानंद का राष्ट्रीय दृष्टिकोण –

स्वामी विवेकानंद ने राष्ट्रीयता की भावना के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया। विवेकानंद एवं रामकृष्ण मिशन ने भारतीयों में आत्मविश्वास एवं आत्म सम्मान की भावना जागृत की इसी भावना ने युवाओं को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की ओर प्रेरित किया। उन्होंने स्वतंत्रता, समानता एवं स्वतंत्र चिंतन की बात कर युवाओं को नई दिशा प्रदान की उन्होंने कहा “उठो जागो और तब तक विश्राम ना करो जब तक लक्ष्य की प्राप्ति ना हो जाए।”

वे भारत के पिछड़ेपन, पतन और गरीबी से दुखी थे बे पश्चिम के अंधानुकरण के विरोधी थे। विवेकानंद आध्यात्मिक उन्नति पर बल देते थे। मनुष्य की आध्यात्मिक उन्नति कर पहले भी मनुष्य को मनुष्य बनाना चाहते थे और उसी को संपूर्ण प्रगति का आधार मानते थे। पूरे विश्व में हिंदू धर्म एवं दर्शन को प्रसारित कर विवेकानंद ने उल्लेखनीय कार्य किया उन्होंने भारत का प्राचीन गौरव को विश्व के समक्ष रखा उन्होंने ऐसी शिक्षा की बात कही जिससे कैरेक्टर का निर्माण हो। उन्होंने शक्तिमान एवं सर्वगुण संपन्न बनने की बात कही उन्होंने कहा कि मनुष्य का साहस एवं बिरथ व एक दिन उसे कुपथ त्यागने की प्रेरणा देंगे।

स्वामी विवेकानंद ने खेतड़ी के महाराजा को लिखा है हर कार्य को तीन कंडीशन से गुजर ना होता है मजाक, विरोध और स्वीकृति जो मनुष्य अपने वक्त से आगे सोचता है लोगों से अवश्य गलत समझा जाता है। इसलिए विरोध और अत्याचार हमेशा स्वीकार करते हैं परंतु हमें दृढ़ और पवित्र होना चाहिए और भगवान की कृपा पर विश्वास रखना चाहिए तब यह सब लोग तो जाएंगे।

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