Rajnaitik aandolan (1920 ई.– 1947 ई.

राजनैतिक आंदोलन (1920 ई. – 1947 ई.)

Rajnaitik aandolan (1920 ई.– 1947 ई.

नमस्कार दोस्तों आज किस आर्टिकल में हम आपको गांधी द्वारा चलाए गए उन आंदोलनों के बारे में जानकारी देने वाले है जिनके माध्यम से हमारे भारत को आजादी मिलाने मिलने में काफी हद तक सहायता की। भारत में हुए आंदोलनों के बारे में जानकारी तो चलिए शुरू करते हैं।

1. असहयोग आन्दोलन (1920 ई. – 1922 ई. 

जब भारत में प्रथम विश्व युद्ध समाप्त होने के पश्चात उत्पन्न हुआ आर्थिक संकट, रोलेट एक्ट, मांटेग्यू चेम्सफोर्ड, जलियांवाला बाग हत्याकांड से भारत में असंतोष फैल गया असहयोग आंदोलन के प्रमुख कारण थे गांधी ने कांग्रेस एवं खिलाफत समिति की मांगों को मिला दिया उन्होंने सरकार से मांग की कि सरकार जलियांवाला बाग हत्याकांड पर खेद प्रकट करें, टर्की के प्रति व्यवहार को नम्र करें और भारतीय को संतुष्ट करने के लिए नई योजना निकाले सरकार को चेतावनी दी गई कि यदि सरकार ने लोगों की इन सभी मांगों को अस्वीकार कर दिया तो वह आंदोलन असहयोग आंदोलन शुरू कर देंगे सरकार ने इनकी मांगों पर कोई ध्यान ना दिया तो गांधी ने 1 अगस्त 1920 को असहयोग आंदोलन का आरंभ कर दिया।

जलियांवाला बाग हत्याकांड (5 फरवरी 1922)

जब भारत छोड़ो आंदोलन चल रहा था उसी मध्य 5 फरवरी 1922 को उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले के चोरी चोरा नाम गांव में एक स्थान है वहां पर एक घटना घटित हो गई चोरी चोरा में शांतिपूर्ण जुलूस को पुलिस ने दबाने की कोशिश की जिस कारण उत्तेजित भीड़ ने पुलिस चौकी को चारों तरफ से घेर लिया और उसमें आग लगा दी इसमें एक थानेदार और 21 सिपाही की मृत्यु हो गई गांधी ने इस घटना के कारण असहयोग आंदोलन को स्थगित करने का फैसला सुना दिया।

2. खिलाफत आंदोलन 

खिलाफत आंदोलन का मुख्य उद्देश्य तुर्की के साम्राज्य के बंटवारे के विपक्ष में था और खलीफा के पद को बनाए रखने के लिए।

प्रधानमंत्री जॉर्ज लॉयड ने भारतीय मुसलमानों को भरोसा दिलाया था कि तुर्की की अखंडता को बनाए रखेंगे। लेकिन प्रथम विश्व युद्ध में विजय प्राप्त करने के साथ ही ब्रिटेन का तुर्की के लोगों के प्रति व्यवहार चेंज होने लगा अपने धार्मिक स्थलों की सुरक्षा को लेकर मुस्लिम चिंता करने लगे तुर्की की हार के बाद ब्रिटेन ने अपनी विजय शक्तियों के साथ मिलकर तुर्की साम्राज्य का बंटवारा कर दिया तुर्की एवं खलीफा के साथ किए गए इस व्यवहार से भारतीय मुसलमानों में असंतोष फैल गया भारतीय मुसलमानों ने इसका विरोध किया और आंदोलन शुरू कर दिया इस प्रकार भारत में खलीफा पक्ष को बनाए रखने के लिए किया गया यह आंदोलन खिलाफत आंदोलन के नाम से जाना गया। 

3. सविनय अवज्ञा आंदोलन (1930)

सविनय अवज्ञा आंदोलन 1930 को भारत के राष्ट्रीय आंदोलन के इतिहास में एक महत्वपूर्ण आंदोलन था जो 1930 में शुरू हुआ था।

जब 1928 कि नेहरू रिपोर्ट की स्वीकृति मिलने के बाद और ब्रिटिश सरकार द्वारा उपनिवेश राज्य प्रधान नहीं किए जाने से भारतीय नेताओं में हम तो चले गया असंतोष फैल गया कांग्रेस की दिसंबर 1929 के लाहौर अधिवेशन में पूर्ण स्वराज्य की मांग की उसके बाद भारतीयों में आशा की भावना भर गई महात्मा गांधी ने अपने समाचार पत्र के यंग इंडिया के जरिए वायसराय लॉर्ड इरविन के समक्ष 11 सूत्रीय मांग की प्रस्तावना रखें इन मांगों को ब्रिटिश सरकार ने अस्वीकार नहीं किया उसके बाद सविनय अवज्ञा आंदोलन का प्रारंभ करने का फैसला लिया गया।

इन मांगों में लगान में कमी करना, सैन्य व्यय कमी करना, नमक कर समाप्त करना, रुपए की विनिमय दर घटाना, विदेशी कपड़ों के आयात को नियंत्रित करना, नशीली वस्तुओं का विक्रय बंद करना, राजनीतिक कैदियों को छोड़ दिया जाए आदि थी।

4. भारत छोड़ो आंदोलन (1942)

भारत छोड़ो आंदोलन भारतीय आंदोलन का एक ऐसा जन आंदोलन था जिसने ब्रिटिश सरकार की जड़ों को हिला कर रख दिया। इस आंदोलन ने भारत की स्वतंत्रता प्राप्ति में एक नई दिशा प्रदान की मार्च 1942 के क्रिप्स मिशन की असफलता ने भारतीय जनता को निराश कर दिया वित्तीय विश्वयुद्ध के दौरान कीमतों में वृद्धि एवं आवश्यक वस्तुओं में कमी के कारण भारतीय जनता में असंतोष की भावना बढ़ती चली गई विश्व युद्ध में मलाया, सिंगापुर और बर्मा में पीछे हट रहा था जापान ने इस पर अधिकार कर लिया था ऐसे समय में महात्मा गांधी ने अपने पत्र में “हरिजन” भारत छोड़ो आंदोलन की बात कहते हुए लिखा कि भारत में अंग्रेजों की उपस्थिति जापानियों को भारत पर आक्रमण करने का निमंत्रण है गांधी ने अंग्रेजो से भारत को ईश्वर के हाथों में अथवा अराजकता में छोड़ने की बात कही।

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